जिंदगी की पहेली
जिंदगी की पहेली कब किसको समझ आई है
जैसी जिसे मिली वैसी उसने बताई है
कई रूप रंग है एहसास बिश्वास भी है कई
हारना सभी को एक दिन, ऐसी बिसात लगाई है
हर पल घटती है पर बढ़ने का भरम देती है
भरम और सत्य के बीच अनदेखी सिलाई है
इस जाल में फंसने या निकलने, किसकी खुशी करें
आत्मा अमर है ये बात तो कान्हा ने भी बताई है
जब छोड़ना है सब एक दिन तो किसकी चाह करें
ये मेरी माँ ये बाप ये बहन ये मेरा भाई है
ऊपर वाले की हर बात में कितनी चतुराई है देखो
चींटी की तरह जी लो मिठाई ही मिठाई है
जिंदगी की पहेली भी वाह क्या पहेली है
जितना डूबोगे इसमे उतनी गहराई है