जिंदगी की दौड धूप
आज की भाग दौड़ वाली जिदंगी की विषेशताओ को बताती मेरी कविता ……
जिन्दगी की दौड़ धूप में
हसीं कहीं सिमटती जा रही है
रिश्तो में आ गयी है कड़वाहट
मिठास कहीं खोती जा रही है
जिन्दगी की…………………..
खुशियाँ कम यहाँ गम ज्यादा हैं
जहाँ भी देखो परेशान ज्यादा हैं
कहने को तो इंसान बहुत हैं शहर में
मगर इंसानियत कहीं खोती जा रही है
जिंदगी की……………….
भूख लालसा कर रही नंगा नाच है
जहाँ देखो वहां हैवान ही हैवान हैं
खुशियों का सौदा यहाँ रोज है होता
रेत की दीवारों में ख्वाहिशें दबती जा रहीं हैं
जिंदगी की दौड़ धूप में
हंसी कहीं सिमटती जा रही है
डाॅ0 ममता सिंह
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