*जिंदगी की दौड़ में ,कुछ पा गया कुछ खो गया (हिंदी गजल
जिंदगी की दौड़ में ,कुछ पा गया कुछ खो गया (हिंदी गजल)
– —————————–
( 1 )
जिंदगी की दौड़ में ,कुछ पा गया कुछ खो गया
सोचना अच्छा नहीं ,जो हो गया सो हो गया
( 2 )
सौ साल तक जगते हुए ही, आदमी चलता रहा
और उसके बाद में जब, थक गया तो सो गया
( 3 )
एक बच्चे की तरह, मैंने बुलाया ईश को
एक झरने-सा वो आया, खूब तेज भिगो गया
( 4 )
सभ्यता का अर्थ जंगल, काटना होता नहीं
सभ्य वह जो बीज को, आकर धरा पर बो गया
( 5 )
फूलमाला में सभी को फूल तो दिखते रहे
कब दिखा जो सूत्र सब को, एक साथ पिरो गया
– —————————-
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451