जिंदगी की दास्तां,, ग़ज़ल
जिंदगी की दास्तां खुशनुमा कुछ अलहदा!
तेरे वास्ते ही जी रहे तू रब कहे या ख़ुदा !!
खुश्बुएं- बहार है चमन-चमन, गली-गली,
लम्हों की याद दिला,आज भी देंते सदा!
जिंदगी में थी अभी तक शोखियां सरगोशियां,
जाने क्यों भाने लगी तनहाइयां होकर जुदा!
खिलखिलाती वो बहारें याद फिर आने लगी,
हार हो या जीत हो यह प्रश्न चिन्ह रहता सदा!
दर्द, गम के साये में पलती रही खामोशियां,
हार कर भी मुस्कुराने की अलग अपनी अदा !
प्रीति के एहसास से है आज भी भींगे वो पन्ने,
आज जो झांका हृदय में,हो गया नमिता फ़िदा !!
नमिता गुप्ता ✍️ लखनऊ