जिंदगी की घड़ियां
*** जिंदगी की घड़ियाँ ****
***********************
मुश्किलों भरी आई है घड़ियाँ
टूट रहीं हैं जीवन की लड़ियाँ
काँटों भरी डगर है जीवन की
मंजिल पर पहुंचाएंगी घड़ियाँं
जिंदगी तारीकियों से है घिरी
मुन्तज़िर बनाती हैं ये घड़ियाँ
नफरतें दिलों में है भरी हुई
प्रेम लौ जगाएंगी ये घड़ियाँ
गम के साये में गमगीन हुए
बुझे चेहरे खिलाएंगी घड़ियाँ
दुख दरिया यहाँ गहराया है
सुखभरी आ जाएंगी घड़ियाँ
दरिया मंझदार में हम हैं खड़े
साहिल पहुंचाएंगी ये घड़ियाँ
जिंदगी तूफानों में घिरी हुई
रास्ता दिखाएंगी हमें घड़ियाँ
ये जिंदगी वक्त की शिकार हैं
कभी खेलेंगे खूब रंगरलियाँ
सुखविन्द्र भी द्वंदों में फंसा है
द्वंद्वों से निकालेगी ये घड़ियाँ
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)