जिंदगी की कश्मकश
जो हार में जीत है, जो प्यार की रीत है जो वक़्त के विपरीत हैे, वो जिन्दगी का गीत है।।
ये गीत है सुना सुना सा,
सुन के अनसुना ज़रा सा।
जहा पे अनसुना किया तो, वक़्त से दगा किया तो, वक़्त है फिर कोसता, विपरीत में ये धोसता।
मिले अगर सहारा तो, नदी को जो किनारा तो, जो वक़्त को मरोरता, आगे को धकेलता,
मेरे गीत को सम्हालता, जैसे कश्ती को निकालता।
वो माझी ये कौन है, जो मुझमे ही मौन है।।
में सोचता ज़रा ज़रा सा,खुद को कोसता ज़रा सा,
ये मैं ही था वो मैं ही था, जो आज हूँ खड़ा यहाँ, जो वक़्त से लड़ा वहाँ।।
ये आत्म ज्ञान हो रहा, ये कर्म ज्ञान हो रहा, ये दिव्यता की राह है,
ये शुन्यता का मार्ग है।।
इस मार्ग में जो चल पड़ा, अनंत पर निकल चला,
सफ़र है ये अजीब सा, पर लक्ष्य के करीब सा
मैं आदि में लीन हूँ, अनंत में विलीन हूं।।
मुझे ‘मैं’ का ज्ञान हो रहा
मैं ‘मैं नहीं एक बिंदु हूँ, जो सिन्धु में तरंग हूँ ।
मैं ‘मैं’ से दूर हो रहा, मैं मोक्ष के समीप हूँ ।।
नमामि कृष्ण शर्मा