जिंदगी की ऐसी ही बनती है, दास्तां एक यादगार
जिंदगी की ऐसे ही बनती है, दास्तां एक यादगार।
जुड़ते हैं जब उसमें कुछ, संघर्ष के पल यादगार।।
जिंदगी की ऐसे ही —————————-।।
मुफलिसी वह क्या जानेगा, रहता है जो महलों में।
बिताता है जब वह भी, मुफलिसी के पल यादगार।।जिंदगी की ऐसे ही —————————-।।
फूलों पे सोने वाले, काँटों की सेज क्या जाने।
गुजरते हैं जब वो भी, काँटों की राह यादगार।।
जिंदगी की ऐसे ही —————————-।।
शासक रहा हो जो सदा, जुल्मों की पीड़ा क्या जाने।
मौजूद हो जब उसमें भी, ज़ख्मों के निशां यादगार।।जिंदगी की ऐसे ही —————————-।।
जिसने लहू अपना बहाकर, औरों को जीवन दिया है।
अपने अरमां को जलाकर, जलाये हो दीप यादगार।।जिंदगी की ऐसे ही —————————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)