जिंदगी और मौत (गजल )
अपना इख्तियार कहाँ होता है जिंदगी और मौत पर ,
नादां इंसान यूँ ही हक़ जताता है जाने क्यों इन पर ।
एक जगाए नन्ही आँखों को मासूम ख्वाब लिए ,
दूसरी सुला दे सदा के लिए सारे ख्वाब छिन कर ।
न अपने आने की खुशी,ना अपने चले जाने का गम ,
आए भी थे खामोशी लिए,जाएंगे खामोशी ओढ़कर ।
आए थे जब तब कौन सी दामन में हमारे जेब थी ,
अब जाएंगे भी सब छोडकर ,सारी जेबें खाली कर ।
क्या हुस्न ,क्या जवानी और क्या जहां की रोशनाई ,
पहले भी होश नहीं था औ अब जा रहे हैसब भूल कर ।
रिश्ते -नाते हैं सब बस एक इस जिंदगी तक के लिए ,
चिराग के बुझते ही चलना है हमें एक तन्हा सफर पर ।
जिन घने अँधेरों से आए थे आखिर में उन्हीं में खो गए ,
नहीं रह पाते हमारे कदमों के निशां इन अंजान राहों पर ।