जिंदगी और जिंदादिली
जिंदगी ए महफिल बचाने की कोशिश हज़ार जारी है,
कर रहे हाथों की सफाई पर दिल में कालिख जारी है,
जिन रिवाजो के नाम पर बोझ कर्ज का उठाता इंसा यहां
चंद सांसों के खातिर अब उनमें बदलाव जारी है,
इनके कर्म की खातिर धिक्कारती रही दुनिया जिनको,
उसी पेशे में खुदा की रहमत सबको नजर आ रही है
जिस इंसानियत को भूल स्वार्थी बन रहा था यह जहां,
उसी इंसानियत की खातिर रहम की भीख मांग रहा है,
शोक में डूब जाता है पूरा देश जहां आसमा के सितारे टूटने पर,
पर सरहद का चांद टूटने पर यह देश मौन क्यूं हो जाता है
जिस सच से भागता आया इंसा अब तक यहां पर,
आज उसी सच का सामना बेखौफ यह जहां कर रहा है,
देख रामायण सीता को निश्चल और अवध को गलत कहा सबने,
पर आज भी सीता जैसा अपमान हर नारी का हो रहा है
द्वापर हो त्रेता हो या हो वो कलयुग सब वैसे का वैसा है,
जिस परीक्षा से बच ना पाया खुदा भी उससे इंसा बचने की कोशिश कर रहा है,
कुछ नहीं बदला भारत के इतिहास से आज भी इस समाज में,
कुप्रथाओं को छोड़ बस अच्छाइयां समाज छोड़ रहा है,
जिन सच्ची और नैतिक मूल्यों को आधुनिक बोल ठुकराया कभी,
आज उसी के साए में इंसा जंग जीतने की कोशिश कर रहा है।