जिंदगी एक किराये का घर है।
शीर्षक – जिदंगी एक किराये का घर है।
विधा – कविता
संक्षिप्त परिचय- ‘ज्ञानीचोर’
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, जिला सीकर,राजस्थान
मो.9001321438
मिला विस्तार दुनिया को,
जिंदगी के नाम पर।
जिंदगी के दंगे कितने,
दंग होंगे जानकर।
झूठ कपट चोरी चुगली,
किया सब अपना मान कर।
जिंदगी को साधने,
चले हर रास्ते पर,
कुछ जानकर कुछ सोचकर।
कुछ अपने लिए, कुछ गैरों के लिए।
सब खो के कुछ पाया,
कुछ अपने लिए कुछ गैरों के लिए।
ऐ जिंदगी ! कितनी मगरूर है तू,
अपनी खातिर गैरों की पनाह ली तू !
क्या है तू जिंदगी !
जंग का मैदान बनी।
जीवन योद्धा लड़ा है।
उसके संघर्ष रक्त से तू सनी।
होशियार बन, ऐ राहगीर !
मंजिल मिली किसे है !
रह जाएगा बन के फकीर ।
दूर से देखने वाला,
सुनहरा झरना नहीं है जीवन।
बहती नदी की धारा है ये,
जो बहे ले के संग पवन।
प्रेम दर्द का ये आलम,
यहीं रह जाना है।
हम सफर में चलते-चलते,
सब यही छोड़ जाना है ।
किराए पर रहने वाले का,
अपना ये मुकाम नहीं।
जाएगा ये छोड़कर,
इतना भी तो प्यार नहीं।
होश-हवास संभल,ऐ बदराही !
तेरा नाता क्या है जग से,
क्या है तूने सोचा।
किया तूने..जो होगा,
वो है जिंदगी का लोचा।
बाँधे तुझको है यहाँँ,
यम का ये जालघर है।
चला चल ऐ राही !
जिंदगी एक किराए का घर है।