जिंदगी आजकल थोड़ा
जिंदगी आजकल थोड़ा
नाजुक बन गयी है
थोड़ा संभल कर चलो
यही बात कविता में लिखता हूँ
सावधानी बरतो समझो
भरोसा रखो ऐ दोस्त!
धैर्य रखो जान पहले है
यही बात कविता में लिखता हूँ
कफनों के बाजार शायद
सस्ते दामों में रमे हैं यहाँ
दुआ करता हूँ ऐ दोस्त!
खुशी जान आबाद कहता हूँ
खैर चंद दिनों का मेला है
किन्तु शहरों में भीड़ बहुत है
शहरों के झोंकों को न देखो
देहली न हो सूनी जज्बात कहता हूँ
जिंदगी आजकल थोड़ा
नाजुक बन गयी है
थोड़ा संभल कर चलो
यही बात कविता में लिखता हूँ
संतोष जोशी
गरुड़,बागेश्वर
Uttarakhand