जिंदगानी
जियें तो जियें कैसे,ये है कैसी जिंदगानी
पल पल तड्पे कैसे,बदलती है कैसी जिंदगानी
रेत पे घर कैसा करिशमा,तंज कसती जिंदगानी
उल्फत मोहबत गम अश्क, बेबफा है जिदगनी
जिंदगी गम है,गम दर्द है, ये कैसी जिंदगानी
दर्द मे आँसु कतरा, ये मौत की है जिंदगानी
इंसान के गरुर की औकात दिखाती है जिदगानी
ना पहली दफा ना आखरी बार, मरघट जिंदगानी
कभी हँसना कभी रोना टुटते इंसान की जिंदगानी
खुदा रहमो करम घूटने पर रैगते इंसान की जिंदगानी
गलतीया मे गलत,ना मे गलत,ये कैसी जिंदगानी
कभी तारीफ कभी कोसा,ये है कैसी जिंदगानी
कौन है तेरा, मै हु तेरा, अपनो की है ये जिंदगानी
कभी रिशतो मे मिठास, कभी बेरूखी जिंदगानी
कभी मदिरा कभी सबाबों मे,झूला ये जिंदगानी
कभी खुआँ कभी नमक रोटी ना, पाने की जिंदगानी
खमोश रहना तन्हा बैठने की,कहानी है जिंदगानी
कभी इसांनियत कभी हैवानियत,दिखाती जिंदगानी
कभी हँसने कभी मौत का बहाने, ढुडे़ जिंदगानी
श्रीहर्ष समझे हरपल कदम, सच है ये जिंदगानी
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य