जाड़ म कुछु बोल जी
जाड़ म कुछु बोल जी
बिन मौसम के पानी आगे,
धुँधरा ह कइसे छागे।
निकलबे कइसे खोल जी,
जाड़ म कुछु बोल जी।
दाँत ह किट किटागे,
रुआ ह घुर घुरागे।
निकलबे कइसे खोल जी,
जाड़ म कुछु बोल जी।
पताल चटनी महमहागे,
धनिया मिरचा संग पीसा गे।
निकलबे कइसे खोल जी,
जाड़ म कुछु बोल जी।
आगी म पनपुरुवा लदागे,
रोटी बर जी ललचागे ।
निकलबे कइसे खोल जी,
जाड़ म कुछु बोल जी।
गोरसी हर अब सुलगागे,
जाड़ अड़बड़ गझागे।
निकलबे कइसे खोल जी,
जाड़ म कुछु बोल जी।
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रचनाकार-डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822