जायें तो जायें हम कहाँ
जायें तो जायें हम कहाँ जरा उसका पता दिजिए।
ज़ख्म हज़ारों दिए है अब दवा भी बता दिजिए।।
अब आँखों में नींद नही रहा दिल में भी चैन कहाँ।
काहें जीना किये हो दुश्वार ऐसे न सजा दीजिये।।
माना टिकना है मौव्वत और चलना ही जीवन है।
पर बंदिशें लगा कर मेरी न मंज़िले जला दिजिए।।
हर नगर है क्यों सुना हुआ डगर भयावह क्यों।
जहाँ रहते हों इंसा हमें उसी राह चला दिजिए।।
जो न पाया कभी खुद को खोना भी क्या उसका।
गिरा ओस जो बन मोती सागर में मिला दिजिए।।
मंज़िल भी कहाँ अक्सर बुनियादी ही रह पाया।
मिटा खुद का वज़ूद वहीं चाहत जो जता दिजिए।।
अविरल बहते जल को खारेपन का ज़हर मिला।
सागर से मिली जो नदी न नाम उसको ख़ता दीजिये।।
मीठे को तो रखते मीठा जो बड़ी दूर से था आया।
पथरीले राहों का थकन सारा उसका मिटा दिजिए।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २७/०५/२०२०