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14 Sep 2021 · 1 min read

जाम अब भी बाक़ी है …

इस जिस्त के प्याले में बचा ही क्या है बाकी ,
मगर मेरे रफीक ने कहा अभी जाम है बाक़ी।

तमाम अरमान लिए दिल जलकर खाक हुआ ,
राख में दबी सुलगती चिंगारी अब भी है बाक़ी।

आसमान नज़र नहीं आता हमें फैलाने को पंख ,
कश्मकश है उड़ने को,होंसले अब भी है बाक़ी।

क़दम मेरे थक चुके हैं मंज़िल का निशाँ तलाशते ,
मगर उम्मीद का दामन हाथों में अब भी है बाक़ी।

तक़दीर ने लाकर खड़ा किया हमेशा दोराहे पर मुझे,
मुस्तकबिल संवारने का हुनर अब भी है बाक़ी।

वक़्त का कारवां कभी किसी के रोकने से न रुका ,
मुश्किलात मैं अपनों का साथ अब भी है बाक़ी।

खुदा के इम्तेहान ख़त्म नहीं होते ना मेरी हिम्मत ,
उस परवरदिगार पर रूह का यकीं अब भी है बाक़ी।

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Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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