जान हो तुम गुलाब जैसी हो।
जान हो तुम गुलाब जैसी हो।
मेरी चाहत हो ख्वाब जैसी हो।
लगा के होठ से मैं तुझे पी जाऊंगा।
मेरे लिए तो तुम शराब जैसी हो।
छीन ली जिसने झपट कर दुनिया।
सच में तुम भी उक़ाब जैसी हो।
जिसको पढ़ता हूं हर घड़ी तुम हो।
जीस्त की तुम किताब जैसी हो।
“सगीर* अपना मोहब्बत भी एक तजुर्बा है।
जिसे समझ नही पाया हिसाब जैसी हो।