जान गया जब मैं …
जान गया जब मैं कि, तू ही मेरे साथ नही थी।
टूट गया अंदर से, वैसे कोई बात नही थी।
सारी रात जो तू बाते करती मुझ से।
बस याद उन्ही को कर के रोया,
क्या पाना था जो खुद को मैंने खोया।
खैर जो बात गयी सो बीत गयी।
प्रेम की गागर रीत गयी।
समझा लिया मन को, आँखों में नही रहा नीर।
दिल के अंदर ही दब गई दिल की पीर।
अब मेरा भी धीरज डोल गया
पुरषार्थ मेरा बोल गया।
क्यो छुप-छुप कर अश्रु बहाता है?
क्यो छोटे को बड़ा बनाता है ?
किसके जीवन मे पतझर नही आया?
किसको समय ने नही सताया?
पतझर के पीछे बसन्त आता है ,
नई कोपले संग लाता है।
रोज -रोज क्यो माथा धुनता है?
अपने भाग्य पर क्यो पछताता है?
फ़ौलादी वही है जिसने लोहा मोड़ दिया।
बीती बात को पीछे छोड़ दिया।
सँवर गया जीवन उसका,जिसने आज को अपनाया है।
भाग्य का रोना छोड़ , कर्म को साथी बनाया है।
अब ख्वाहिशों को छोड़ दिया।
जीवन का रथ मोड़ दिया।