जान के दुश्मन
जान के दुश्मन मन में रहकर पलते हैं
मेरे दीये तेरी यादों से जलते हैं
दोस्त जिन्हें इल्म मैं तेरा आशिक हूं
तेरे नाम की देके दुहाई छलते है
अपने सपनों की दुनिया में मस्त रहो
ज्यों चंदा के संग संग तारे चलते हैं
इश्क इबादत समझ के तुमको चाहा है
उनमें से हम नहीं हाथ जो मलते हैं
सच तो यह है जब से तुम को पाया है
बड़ी शान से घर से विजय निकलते हैं