जान अपनी है,देश सभी का — कविता
सोचा किसने था ऐसे डरावने पल भी आएंगे।
देखते ही देखते हम एक दूजे से मिल नहीं पाएंगे।
दौड़ रहे थे सभी तो चकाचौंध की आंधी में,
थे कहां इंतजाम पास हमारे,वक़्त की बेरुखी सह जाएंगे।।
वक़्त तो कई दफा करता रहा सचेत हमें।
पर हम अपना अहंकार कब छोड़ पाएंगे।।
आज भी जब हम गहरे संकट से गुजर रहे है ।
किसी सरकार पर ही आरोप लगाएंगे।।
जान अपनी है ,है देश सभी का।
क्या इस विकराल घड़ी में एक हो पाएंगे।।
अपनी सुरक्षा के तरीके बताए जा रहे है हमें।
क्या दो गज दूरी और मास्क का पालन कर पाएंगे।।
अपनी जान की कीमत पहचानिए,मेरे भाई बहनों।
बहुतों का छूटा साथ हमसे,स्वयं के लिए निर्देश अपनाएंगे।।
हिम्मत न हारना,जहां कहीं हो आप सभी।
घर बैठ,हौसला बड़ा, एक दूजे का सहारा बन जाएंगे।।
राजेश व्यास अनुनय