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19 Jan 2021 · 1 min read

जाने क्यो हम कवियों का

जाने क्यों हम कवियों का ऐसा काम नहीं होता
बगल में छुरी रख मुंह में तो राम राम नहीं होता

महफूज रखते है अपना वतन अपनी कलम से
वतन बेच खाने का हमारा कोई दाम नहीं होता

हमको माता कैकयी ने दिया वनवास ये कहकर
तुमसे तो कमबख़्तो घर में भी आराम नहीं होता

मुमकिन है तो जाओ लौटा दो मेरा रामराज्य ही
रावण बन घुम रहे सब क्यों कोई राम नहीं होता

सियासत की दुकाँ से जंग लगी क्या कलमो को
जलता देश तो बुझाने का नामों निशाँ नहीं होता

इंसान होकर तूने ज़मीर बेच डाला कोड़ियो में
उस पर ये शिकवा की कवियों का नाम नहीं होता

चल अशोक तू भी उठाकर रख अपनी दुकाँ यहाँ
मस्जिद में सलाम तो मंदिर में राम राम नहीं होता

अशोक सपड़ा की कलम से

Language: Hindi
309 Views
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