जाने क्यों उससे ही अदावत थी।
जिसके दामन में मेरी राहत थी।
जाने क्यों उससे ही अदावत थी।
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जिंदगी से नहीं मिला था तब।
जिंदगी से बहुत शिकायत थी।
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मुझमे ज़िद थी नहीं जवाबों की।
मुझको बस पूछने की आदत थी।
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ख़ाक वो अपनी ख्वाहिशों से हुआ।
चाहतो की बहुत हरारत थी।
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रूह का राब्ता हुआ अब तो।
हममे पहले खतो किताबत थी।
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मैं उसे जानता था सच मानों।
उसमे पहले बहुत शराफत थी।
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मेरे क़दमों में हिचक बैठी थी।
दिल में उसके दबी इज़ाज़त थी।
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