जाने क्यूँ भटके मानव
मंदिर मस्ज़िद में कैद नही, रहता भी नही गुरुद्वारे में,
वह रहता है मन-मंदिर में, प्रकृति प्रेम उजियारे में ।
जिसमें श्रद्धा मानवता की, देवपुंज है देह वही,
पर जाने क्यूँ भटके मानव, अज्ञान और अंधियारे में।
मंदिर मस्ज़िद में कैद नही, रहता भी नही गुरुद्वारे में,
वह रहता है मन-मंदिर में, प्रकृति प्रेम उजियारे में ।
जिसमें श्रद्धा मानवता की, देवपुंज है देह वही,
पर जाने क्यूँ भटके मानव, अज्ञान और अंधियारे में।