जाने क्यूँ उसको सोचकर -“गुप्तरत्न” भावनाओं के समन्दर में एहसास जो दिल को छु जाएँ
जाने क्यूँ उसको सोचकर
मेरे चेहरे पर मुस्कराहट सी आ जाती है ,
वो न था ,न हो सकता था कभी मेरा ,
फिर भी,जाने क्यूँ उसको सोचकर
गर्मी में भी ठंडी हवाओं सी सरसराहट सी आ जाती है ,
क्या है उससे मेरा वास्ता ,वो तो में भी न जान पायी ,
फिर भी,जाने क्यूँ उसकोसोचकर ,
गर्मी की जलती रेत में भी हलकी तरावट सी आ जाती है ,
यूँ तो रोशनी है हर तरफ मेरे
फिर भी,जाने क्यूँ उसको सोचकर ,
दिल के अँधेरों में एक जगमगाहट सी आ जाती है //
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