जाने कैसी कैद
जाने कैसी कैद में हूं ?
कुसमय की पैठ में हूं ।
ज़द में मेरी अब नहीं कुछ
फासलों की बैठ में हूं ।
जो वायु प्राणदायिनी
मुझको छू न पा रही ।
तन की सारी चेतना
धूप काल की सुखा रही ।
मैं जी रही ज़रा ज़रा
मैं घुल रही ज़रा ज़रा
न पूरा जी ही पा रही
न पूरी घुल ही पा रही ।
ऊब जो जीवन की है
वो गले तक भर गई ।
न सांस ढंग से आ रही
न सांस ढंग से जा रही।