जानवर और आदमी
जानवर ही नहीं
आदमी को आदमी पालतू बनाता है
कुत्ता दो रोटी पाकर
दुम हिलाता है गुर्राता है
बात बढ़ी तो
स्वामी के दुश्मन को काट खाता है
धोखा देना उसे नहीं आता
धोखा देने की की कला
केवल आदमी कोआती है
जानवरों को नहीं
जानवर आदमी नहीं बन सकते
मगर मौका पाते ही आदमी
जानवर बन जाता है
भूखें भेड़िए की तरह नोच खाता है
पालतू आदमी जब पालतू नहीं रह जाता है
तब उसके उदर में नदियों का पानी
, जंगल, पहाड़, पत्थर, धरती सब समा जाता है