जानकी माय आन -( कविता)
जँ हम उठलौ आशिष परैछ,हाथ सबटा चार
माय हमर बान्हि राखि देथिन्ह जेना आइये
ज हम बिनु पाग पहिर बहर गेलौ
डर लागै बाबू नहि छोड़ता, ज नैय संस्कृति साजल माथ-पाग
कनिया आचर तर मे चलू आय छूपी जाउ,जानकी माय आन
ऐसन मनुख नैय पाओल कोनो दुनिया मे ,अछि ठामे ठामे
माय भगवती उगना दुनू कानैय, दूरजो कपूत बागडोर तोर मान
मिथिला अक्षर नैय सिखयैह कखनो,की हमर बापक जिरायत
मिथिला मैथिली भाषा संस्कृति ओर लोट चलू सब,नैय सिखब तखन
कनिया आचार तर मे चलू आय छूपी जाउ, जानकी माय आन
परदेश रहू आ गाम रहू, चार टाका कमाबू,मिथिला केर बडाबि शान
मानचित्र मे हमहीं रहि ऐकटा ,पूजे दुनिया चारु धाम
संस्कृति ठेगा सँ नैय तोड़े देहरी,कनिया छोड़े नैय देहपाज
जो रौ कठ-जरुआ नवका पाहुन आयल , रहे रहे संस्कार बहरायत
कनिया आचार तर मे चलू आय छूपी जाउ, जानकी माय आन
मौलिक एवं स्वरचित
@श्रीहर्ष आचार्य