जाति
जाति
सुबह के दस बज चुके थे और राहुल अभी भी सपनो में खोया हुआ था। एक नींद ही वो समय है जब आदमी सब कुछ भूल जाता है पर कुछ सपने सोये हुए को भी बेचैन कर देते है। बेरोजगारी के इस भयंकर तूफान में रात के 2 तो रोज बज ही जाते है पर सुबह जल्दी उठना किसी जंग जीतने जितना मुश्किल सा हो गया है।
उठते ही आदतन अख़बार के पेजो को पुराना करने लगा और अखबार में भी वही पुरानी बातें ,पहला पेज देखते ही जातिवाद और नेताओं को कोसने लगा ।एक आरक्षण वाला बन्दा माइनस में अंक लाके भी नोकरी पा गया और जनरल वाला 100 में से 80 लाके भी बेरोजगार रह गया । संविधान निर्माताओं और सरकार को कोसते कोसते भारत में जातिवाद के जन्म और और इसके दुष्परिणाम पर वार्तायें प्रारंभ हो गयी और कहने लगा कि जातिवाद तो जड़ से ही समाप्त होना चाहिए। तभी हॉस्टल के बाहर से कोई लड़का अंदर आया और कहने लगा “भैया आज में कोई एग्जाम देने आया हूं और एग्जाम शुरू होने में अभी काफी समय है क्या तब तक में यहाँ थोड़ा आराम कर सकता हूँ बाहर काफी धूप और तेज गर्मी है” तभी राहुल और उसके दोस्तों का पहला सवाल यही रहा कि “कौन जाति के हो?”
वह अंजान विद्यार्थी वहाँ से अपना बैग लेके तुरंत चला गया क्योंकि वो अलग जाति की होस्टल थी जिसमे अन्य जाति वालो का प्रवेश वर्जित था।