जाति है कि जाती नहीं…
सदियों से
हमारी जाति में
लोग मिलते
रहे हैं माटी में…
(१)
रह-रहकर
उठा करती है
एक हूक-सी
मेरी छाती में…
(२)
किस वहशी ने
लगाई आग
गौतम-नानक की
थाती में…
(३)
इंसानों की
कद्र कहां
इस मनुवादी
परिपाटी में…
(४)
मासूमों की
चीखें कौन सुने
बहरों की
इस घाटी…
(५)
कितनों का लिखूं
नाम आख़िर
मैं दर्द भरी
इस पाती में…
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Shekhar Chandra Mitra
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