जाति मजहब जिंदगी में भाव मत दीं
जाति, मजहब जिंदगी में, भाव मत दीं।
बाति जब नफरत क होखे, चाव मत दीं।
तीर शब्दन के बहुत ही, दर्द देला-
शब्द के मरहम लगाईं, घाव मत दीं।
भजि लऽ हरि के नाम।
बनि जाई सब काम।
सुबह सबेरे रोज-
बोलऽ सीताराम।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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