*जाड़ों में बरसात (दो कुंडलियाँ)*
जाड़ों में बरसात (दो कुंडलियाँ)
(1)
बरसे बादल हो गई , जाड़ों में बरसात
ठिठुर – ठिठुर कर कट रही ,ठंडी – ठंडी रात
ठंडी – ठंडी रात , ओढ़कर कंबल सोओ
बाहर . जाना . भूल , बंद कमरे में खोओ
कहते रवि कविराय ,ग्रीष्म में जिस को तरसे
हाय हाय दुर्भाग्य , वही जाड़ों में बरसे
(2)
चढ़ा करेला नीम पर ,हुआ कोढ़ में खाज
बारिश जमकर हो रही ,जाड़ों में यों आज
जाड़ों में यों आज ,बूँद पिस्टल की गोली
बरसी ताबड़तोड़ , शत्रु की जैसे टोली
कहते रवि कविराय ,दुष्ट मौसम अलबेला
गरज रहा है व्योम ,नीम पर चढ़ा करेला
————————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451*