जाग दुश्मन गये जब जहाँ सो गया
जाग दुश्मन गये जब जहाँ सो गया
वार होने लगे पासबाँ सो गया
रातभर आँधियों ने मचाया गदर
फूल रोते रहे बागबाँ सो गया
सख़्त हालात में थी ज़रूरत जहाँ
ये मुक़द्दर हमारा वहाँ सो गया
बाद मुद्दत के ख़ुशियाँ मिलीं भी मगर
ऐन उस वक़्त ही दिल कहाँ सो गया
सो न पाये अमीरी के बिस्तर पे हम
गुरबतों के कोई दरमियाँ सो गया
कोई जागा रहा झूठ को बोलकर
कर के कोई मगर सच बयाँ सो गया
वे मुसाफ़िर थे कितने ख़बर भी नहीं
लश्करे-रेत में कारवाँ सो गया
चुपके-चुपके जलीं बस्तियां इस क़दर
जो जहां था वहाँ का वहाँ सो गया
बोल ‘आनन्द’ औक़ात क्या है तेरी
चार कांधे मिलेंगे जहाँ सो गया
– डॉ आनन्द किशोर