जाग करे क्यों।
कोई मुझमे ऐसे जागा करे क्यों,
आँखों में क़याम किया करे क्यों!
कोई रात भर रहे इन आँखों में,
पलकों पर मेरी जला करे क्यों!
रास हर जख्म हर दर का मुझे,
बेबस जख्मो की दवा करे क्यों!
वतन के दो आईने भी हैं एक,
ऐसे आपस में लड़ा करे क्यों!
जमाले-यार से रोशन हुआ घर,
कोई रोशन फिर दीया करे क्यों!
एहसास उतरते नहीं कागज़ पे,
‘तनहा’ फिर लिखा करे क्यों।
तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’