जाग ए दर्द ! तू जल्दी जाग….
जाग ए दर्द ! तू इंसा के दिल में जाग ,
लगी हुई है जहां में नफरत की आग ।
तू जागेगा तो ही दिल में तड़प उठेगी ,
इस तड़प से बज उठेंगे प्रेम के राग ।
भावनाओं का समुंदर उमड़ेगा तभी ही ,
सारा द्वेष ,बैर ,क्रोध जाएगा भाग ।
तेरे जागने से हिंसा की आग ठंडी होगी ,
बरसाएँगे शीतल फुहार करुणा / अनुराग ।
हर प्राणी के बीच हो प्रगाढ़ निश्छल प्रीति,
यह हमारी धरती बन जाएगी स्वर्ग ।
तू जागेगा तो मन की कलुषता दूर होगी ,
पश्चाताप के आंसूयों से धुल जाएंगे दाग ।
समवेदनाओं को भी ज़रूरत जागने की ,
हर प्राणी के सुख -दुख को करे आत्मसात ।
इंसान ने जिस गहराई में सुला रखा है ज़मीर ,
आहों को दे ऊंची तान के ज़मीर जाए जाग।
इंसानियत के मजहब के वास्ते सुन ए दर्द !
तू इंसान के दिल में जल्दी से जल्दी जाग ।