जागो हे सामर्थ्यवान
जागो हे सामर्थ्यवान!
जगा रहा पक्षी का कलरव
हो रहा दिशाओं में भान
जागो हे सामर्थ्यवान!
सुबह की लालिमा दिखी है
कली कली हर डाल खिली है
कर रहे मधुप मधुपान
जागो हे सामर्थ्यवान!
दिग दिगंत फैला उजियारा
सूरज से अंधियारा हारा
गा रही कोकिल जयगान
जागो हे सामर्थ्यवान!
आलस को छोड़ो उठ जाओ
जो चाहो इच्छित पा जाओ
मंत्र है मूल महान
जागो हे सामर्थ्यवान
बीत गयी अंधेरी रात
बदलाव की है यह बात
सब कुछ सदा न रहता एक
प्रकृति का है वरदान
जागो हे सामर्थ्यवान ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र