जागो सोने वालो
मैं भारत के कण-कण में,
मैं बसा हुआ हूँ इस रण में।
है ऋण बहुत मुझपे इसका,
है जीवन मेरा भी इसका।।
यह आर्यव्रत संपूर्ण मेरा,
मैं आर्यपुत्र भी कहलाऊ।
मैं धनसंपदा से पूर्ण हुआ,
सोने की चिड़िया कहलाऊ।।
ना कभी कोई अत्याचार किया,
अपनों से पहले औरों को सदा ही मैंने प्यार किया।
वो भूल गए शिष्टाचार दिया,
जख्म सहे सीने पे अपने औरों को हमने उपचार दिया।।
वो आए हम को लूट लिया,
अमानवीय अत्याचार किया।
हम भूल गए और साथ लिया,
छाती से लगाकर प्यार किया।।
सहनशील हमसे ज्यादा,
ना आया ना कोई आएगा।
कायरता भी हमसे ज्यादा,
ना कभी कोई दिखलाएगा।।
हम भूल गए उस बर्बरता को,
ना सहन कोई करपाएगा।
वो छोटे-छोटे बच्चों को,
भालों की नोक पे रखते थे।।
वो वहशी इतने गंदे थे,
हम कहने में शर्माते हैं।
वो कहते खुद को बंदे थे,
हम सोच के भी घबराते हैं।।
वो नारी को बस भोग समझ,
रिश्तो का मान गिराते थे।
वो कायर थे बस कायर थे,
वीरों का मान गिराते थे।।
मैं दोष नहीं उनको देता,
कुछ जयचन्दो की देन हुई।
वो कायर अपने, अपनों को,
दुश्मन की भेट चढ़ाते थे।।
हम भूल गए क्या बात सही,
अपने तो अपने होते हैं।
हम पृथ्वी, प्रताप और वीर शिवा का,
साथ नही दे पाते हैं।।
अब जागो आर्यपुत्र कब तक तुम,
बिन निंद्रा के ही सोओगे।
अगर अभी नहीं तुम जग पाए तो,
फिर कभी नहीं जगपाओगे।।
=======================
“ललकार भारद्वाज”