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11 Mar 2020 · 1 min read

बिल्ली तो ताक रही

खोलो आँखें सोई हारी , समझो भी ज़िम्मेदारी,
क्यों बनते क़बूतर , बिल्ली तो ताक रही।

शीशे जैसा ये दिल है , कच्चा मानो साहिल है,
लहरें जो टकराई , बहेगी ख़ाक रही।

भाग्य भरोसा तो छोड़ो , संग समय के दौड़ो,
वरना पछताओगे , बचे ना नाक रही।

शाम कहीं ना हो जाए , दिल कहीं ना खो जाए,
चलना संभलके रे ! ज़िंदगी नाप रही।

–आर.एस.प्रीतम

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