बिल्ली तो ताक रही
खोलो आँखें सोई हारी , समझो भी ज़िम्मेदारी,
क्यों बनते क़बूतर , बिल्ली तो ताक रही।
शीशे जैसा ये दिल है , कच्चा मानो साहिल है,
लहरें जो टकराई , बहेगी ख़ाक रही।
भाग्य भरोसा तो छोड़ो , संग समय के दौड़ो,
वरना पछताओगे , बचे ना नाक रही।
शाम कहीं ना हो जाए , दिल कहीं ना खो जाए,
चलना संभलके रे ! ज़िंदगी नाप रही।
–आर.एस.प्रीतम