जागे हुए ज़मीर का शायर
अपनी जुबां को हरगिज़
मैं सी नहीं सकता!
अब बुजदिलों के जैसे
मैं जी नहीं सकता!!
सुकरात, मंसूर और
कबीर का वारिस हूं!
गैरत को अपनी घोलके
मैं पी नहीं सकता!!
Shekhar Chandra Mitra
अपनी जुबां को हरगिज़
मैं सी नहीं सकता!
अब बुजदिलों के जैसे
मैं जी नहीं सकता!!
सुकरात, मंसूर और
कबीर का वारिस हूं!
गैरत को अपनी घोलके
मैं पी नहीं सकता!!
Shekhar Chandra Mitra