****जागरण गीत****
सुनो रे!आर्यावर्त के रहवासियो,पुरातन काल के वीर साहसियो।
चिर निद्रा मे सुप्त आलसियो,आज मैं तुम्हे जगाने आया हु।
अत्याचार का व्यापार बढा है,पाप का सूरज आसमान चढा है।
चहुंऔर रूदन का कलुष मढा है,आज मैं तुम्हे बताने आया हु।
अब तो राणा भी निस्तेज पडा है,मानो लाशो का जुलूस खडा है।
प्राणतत्व भी अनायास सडा है,आज मै जान फूकंने आया हु।
केहरि भी वन से निकल गया है,गिदड मांद मे घुस चुका है।
कौवा दरबारी बना सजा है,आज मैं राज खोलने आया हु।
आज बेटी पर दुःख टुट पडा है,हर कोई अस्मत लेने अडा है।
दुजा शिकारी बन द्वार खडा है,आज मैं व्यथा बताने आया हु।
दीनहिन का पैर पांव जकडा है,लूट लिया जो मौका पडा है।
बदहाली मे ही जीवन सडा है,आज मैं तुम्हे बताने आया हु।
बुजुर्ग घर मे ठगा सा खडा है,कोई नही आज उसे पूछ रहा है।
बेटा मनमानी करने पर अडा है,आज मै तुम्हे समझाने आया हु।
धर्म भी अब तो मंद चल पडा है,पाखंडियो की भेंट चढा है।
हर कोई पंडित बनकर खडा है,आज मै तुम्है चेताने आया हु।
अब भी वक्त कहा गवाया है,सब अपने ही हाथ की माया है।
पलभर मे करो सारा सफाया ,आज राणा ने भी यही फरमाया है।
©®तूलिकार
✍️प्रदीप कुमार”निश्छल”