ज़ेहन पे जब लगाम होता है
ज़ेहन पे जब लगाम होता है
आदमी तब ग़ुलाम होता है
मय-कशी है बहुत ग़लत लेकिन
ख़ून पीना हराम होता है
जी-हुज़ूरी का मर्ज़ जिसको हो
चाटना उसका काम होता है
अपने दुश्मन को छोड़ देना भी
क्या गज़ब इंतिक़ाम होता है
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’