ज़ीनत-ए-भ्रम
रंग ना देखो,
देखो ना निरुपम चेहरा,
यह भ्रम-सी सुंदरता
आज है
यकिं नहीं
कल रहेगी भी |
यह वक्त का ही तो इंद्रजाल है,
जो निरूपम सा चेहरा लिए
घूम रहे हो आज तुम
ये वक्त भी जाएगा
यह निरूपमा भी जाएगी |
गुजरते हैं मानव, जीवन में
बाल्यकाल, यौवन औ बुढ़ापे से
यकिं मान,
ये कालचक्र भी घूमेगा,
और सब कुछ बदलेगा
अगर अभी हो बाल्यकाल में
तो एक दिन ये बाल्यावस्था भी जाएगी
फिर यौवन आएगा
वो भी समय के साथ गुजर जाएगा
फिर आएगी एक ऐसी अवस्था
जिस अवस्था में,
तुम्हारा वह निरूपम-सा चेहरा फीका पर जाएगा
वो हृष्ट-पुष्ट जिस्म भी ढल जाएगा,
इसलिए ऐ बशर,
नाज़ ना करना अपने रंग-रूप पर |