ज़िन्दगी
रात को जलााकर, चूल्हा जलाया
और हांडी फिर से
चढ़ा दी तुमने….
आज क्या पका रही हो
कुछ खास खिला रही हो
कहीं फिर से वही तो नहीं…
सुनो न….
बहुत दिन हुए
कुछ मीठा खाए
वही पका दो …
बहुत हुई तुम्हारी कल कल
आज ही खिला दो न….
वो देखो…
उधर ढके पड़े हैं
कई खवाव मेरे
आधे अधूरे…
कभी उनको ही पका दो
तश्तरी में सजा दो
बहुत हुई तुम्हारी मर्ज़ी
आज मेरी पसंद का
बस कुछ तो बना दो न……
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