ज़िन्दगी से सौदा
ज़िंदगी आओ ज़रा सा तुझसे सौदा करना है।
जीना है मुझको अभी रंग ज़िंदगी में भरना है।।
थक गया मैं भाग कर थोड़ा सुकूं अब चाहिए।
सो सकूं कुछ पल मुझे मां का आँचल चाहिए।।
मां सुनाए फिर मुझे वो ही सुनी सब लोरियां।
जिसमें हो शहजादा प्यारा गाँव की हो गोरियां।।
मुझको चलना है पिता की उंगलियां फिर पकड़ कर।
करनी है ख्वाहिश मुझे उनसे गले से लिपट कर।।
फिर उन्हीं गलियों में नंगे पैर तन है दौड़ना।
बाग से अमरूद कच्चे, बेर पक्के तोड़ना।।
दोस्तों के संग कंचे, गिल्ली डंडे खेलते।
बारिशों में भीगते कीचड़ में दम भर लोटते।।
डांट खानी है गुरु से स्कूल से फिर भागकर।
देखना है चाँद तारे खिड़कियों से झांक कर।।
दे दो फिर मासूमियत वो सादगी और अल्हड़पन।
मेरी सारी उम्र ले लो मुझको लौटा दो वो बचपन।।
खो गया जबसे है बचपन मुस्कुराया ही नहीं।
ज़िंदगी को खुल के जी भर मैं जी पाया ही नहीं।।
रिपुदमन झा “पिनाकी”
धनबाद (झारखंड)
स्वरचित एवं मौलिक