ज़िन्दगी के साथ है ग़म क्या करें….!!
अश्क की बारिश झमाझम क्या करें।
ज़िन्दगी के साथ हैं ग़म क्या करें।
अब तलक मैं बेकऱारी में हँसा,
हो गई अब आँख पुरनम क्या करें।
है मुकर्रर कूच को बस एक दिन,
बेकसी लगती है हरदम क्या करें।
ज़िन्दगी औ मौत में क्या फासला,
मौत है आनी भला हम क्या करें।
ज़िन्दगी औ हिज़्र से रिश्ता जुड़ा,
फिर भला बोलो कि मातम क्या करें।
बस खुदा की बंदगी करते चलो,
मौत लगती फिर से बेदम क्या करें।
जुस्तजू बस आज इतनी है ‘सचिन’,
काम ज्यादा उम्र है कम क्या करें।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’