ज़िन्दगी की तरकश में खुद मरता है आदमी…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
सिगरेट का कश और धुएँ की धुन में
कुछ इस तरह से रमता है आदमी
हर रोज़ कुछ इस तरह से
टुकड़ा-टुकड़ा जलता है आदमी
जानता है हक़ीक़त समझता है दर्द
फिर भी रोज़ मरता है आदमी
बड़ी शौक़ से हर कश में अमीरी जीता है
ज़िन्दगी की तरकश में खुद मरता है आदमी…