ज़िन्दगी एक प्लेटफॉर्म
ज़िन्दगी एक प्लेटफॉर्म है
जिस तरह प्लेटफॉर्म पर
गाड़ियाँ आती हैं और चली जाती हैं
उसी तरह ज़िन्दगी में
लोग आते हैं और चले जाते हैं
रह जाती हैं यादें
सिर्फ यादें
उन पटरियों की तरह
जो अहसास दिलाती हैं
कि अभी-अभी कोई गाड़ी
यहाँ से गुजरी है
ज़िन्दगी एक प्लेटफॉर्म है।
आदमी देखता रह जाता है
उन तमाम दरख्तों की तरह
जो खड़े-खड़े देखा करते हैं
गाड़ियों को आते-जाते हुए
चल नहीं सकते
सिर्फ सोचते हैं
‘सब अपना-अपना मुकद्दर है’
ज़िन्दगी एक प्लेटफॉर्म है।
वक्त की मार को
आदमी सहन कर लेता है
उस पुल की तरह
जो हर वक्त
अपने सीने पर महसूस करता है
आती-जाती हुई
गाड़ियों के आघातों को
कुछ नहीं बोलता
क्योंकि
यही उसकी नियति है
ज़िन्दगी एक प्लेटफॉर्म है।
✍🏻 शैलेन्द्र ‘असीम’