ज़िन्दगी।
खुद को ही कश्ती खुद को पतवार बना डाला,
मैंने अपनी मां को ही अपना संसार बना डाला।
दोसी होगा कोई और उसके कत्ल का,
उसने खुद को ही खुद का गुनहगार बना डाला।
मार मैं ही देता उससे उसकी गलती पर,
मगर,
उसने ही मुझको खुद का तलवार बना डाला।
खुशी की तलाश में भटक रहा था मैं,
अरे,
उसने मुझको अपना घर – बार बना डाला।
ख्वाइश पूरी करने की ख्वाइश ले कर तुम उसके पास जाते हो,
अरे,
तुमने ही पुज – पूज कर उससे पत्थर बना डाला।