ज़िद्दी ख्वाहिशें
ख्वाहिशें बड़ी ललचाती है
जीने की चाह बढ़ाती है
और अगर रह जाए अधूरी
तो दिल को बड़ा तड़पाती है
ज़िद्दी ख्वाहिशें
कितना समझा लिया ,रूकता नहीं,
रोज एक नई ,जिद पकड़ लेता है…
एक जिद्दी बच्चे की तरह ,करके ज़िद,
दिल को जकड़ लेता है……….
कैसे करूं इसकी ,हसरते पूरी ,
जब जीवन की जरूरतें ही ,रह गई अधूरी…
जिसे करना था पूरी, वह कर न सकी,
अब इन ख्वाहिशों को कैसे करें पूरी……
यह तो रोज अपनी ,चाहते बदल लेती है,
कभी इस,कभी उस दिल में, घर कर लेती है…
नहीं कोई एक ,ठिकाना इसका ,
यह तो छलिया बनकर, ठग लेती है…..
ख्वाहिशों पर, बस भी तो नहीं मेरा ,
यह तो सपने हैं, सपनों का नहीं बसेरा….
कि जाकर छीन लाऊं ,उनकी बस्ती को ,
ताकि बचा सकूं मैं, अपने दिल की हस्ती को…
एक अजीब सी ,टीस होती है दिल में ,
जब कोई इच्छा अधूरी ,रहती है जीवन में…
रोज कुरेदती है, इच्छा दिल को थोड़ा थोड़ा,
हो जाता हैं फिर वहां, घने ख्वाहिशों के पहरा…..
बांध लूं कहीं ख्वाहिशों को, ऐसी जंजीर नही,
ख्वाहिशें बेईमान है ,दिल इसीलिए मंदिर नहीं…
बीत गए वो जमाने ,जब प्यार पूजा था,
तब जीवन फिर , बिना किसी के अधूरा था….
दीपाली कालरा