ज़िंदादिली
क्या खूब है यह ज़िंदगी हम ज़िंदगी से खेले।
कल कि हमें क्यों खबर जब हो ना हम अकेले ।
मंज़िल कोई भी हो कोई डगर हमें इसकी क्यों फ़िक्र
जाना किधर है किस मोड़ पर हम खुद ही ढूंढ लेंगे।
हँस खेल के ग़म बांट लो यह सोचकर नहीं तुम अकेले ।
ये क्या हुआ क्यों हो ख़फा गुमसुम से यूँ ग़मज़दा।
सब साथ है तो ज़िंदगी वरना रहेंगे मौत में सब अकेले।
ज़िंदादिली से काट लो जिंदगानी का यह सफर।
वैसे मिलेंगे बहुत ढोते जिंदा लाश हर पल जीते मरते।