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18 May 2023 · 1 min read

ज़िंदगी

बिन दीवार की मकान हो गयी है
ज़िंदगी सियासती दुकान हो गयी है !

मेला यहाँ बुझते चिरागों का है
लौ चिराग की बदनाम हो गयी है !

सच की आँख में जलता हुआ अंगार है
कलम की ताकत आज तूफ़ान हो गयी है !

चाँद में दाग तो है , पर बेनूर कभी न था
आज ख़ूबसूरती मगर बेपर्दा सरे आम हो गयी है !

दौर सियासती है बिकने लगी है इंसानियत यहाँ
जुनून ए सत्ता में ईमानदारी क़त्ले आम हो गयी है !

संजीदा रहना ज़िंदगी को रास आने लगा है अब
अजीबो गरीब हादसों से किस्मत भी हैरान हो गयी है !

पथरीले रास्तों सी हो गयी है ज़िंदगी ‘इंसान’ की यहाँ
मुलायम बिस्तर सी ज़िंदगी हैवान की शान हो गयी है !

बदल से गए हैं नज़ारे एक तुम्हारे जाने के बाद
ज़िन्दगी की हर सुबह ढलती शाम हो गयी है !

चले आया करो हर रोज़ महकती हवाओं की तरह
कि बिन तुम्हारे ज़िन्दगी बे आराम हो गयी है !

हर लफ्ज़ में जिंदा रहता है इक एहसास तुम्हारा
हाँ,चले जाने से तुम्हारे ज़िन्दगी की सही पहचान हो गयी है !

….डॉ सीमा ( कॉपीराइट )

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